तेरा देखा हुआ चाँद मेरी छत पर
- Aakanksha Singh
- 15 hours ago
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क्या हुआ अगर तेरी सांसों की नर्मी से ये हवा वाक़िफ़ नहीं,
क्या हुआ अगर मेरी सुबहें तेरे शहर से गुज़रती नहीं...
ज़मीं दो छोरों पे सही, पर आसमाँ तो एक ही है,
वो चाँद जो तेरे शहर में चढ़ता है, मेरी रातें भी उसी से रोशन होती हैं।
मैं अक्सर सोचती हूँ —
तू भी यूँ ही देखता होगा उस चाँद को, चुपचाप, मेरी तरह।
जैसे ख़्याल की रौशनी में कोई हाथ थाम ले,
जैसे दूरी सिर्फ़ जिस्मों में हो, दिल तो एक साँस लेते हों।
क्या हुआ अगर हम दो किनारों पर हैं दुनिया के,
हवाओं की तरह ख्वाहिशें तो बह ही जाती हैं...

तेरे शहर में जब बारिश होती होगी,
यकीन मानो — मेरे आँगन की मिट्टी भी महक उठती है।
तेरा देखा हुआ चाँद आज मेरी छत पर है,
जैसे तू ख़ुद मेरी आँखों में ठहर गया हो।
और फिर मैं सोचती हूँ —
इश्क़ शायद वही है, जो फ़ासलों में भी ख़ुद को ढूंढ ले।

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